Sunday, 30 September 2012
Monday, 19 December 2011
INNER TREASURES OF THE SOUL
Hanuman , a vaanara( monkey) , gained the exalted status of deity while Ravana, with the world's wealth in the palm of his hand ,was reduced to naught . The difference between Hanuman and ravana was that the former leaned towards spiritual treasures whereas the latter gravitated towards the material temptations of the world. Hanuman was humble and wanted to be the greatest devotee; Ravana was inflated with ego; he wanted to be the mightiest king. Hanuman spurned the priceless necklace studded with precious gems offered by sita because its beads did not resonate with the name of Rama.To a man of the world it would seem foolish to reject a priceless necklace ,but a spiritually awakened soul would be indifferent to it , attaching value only to that which was permanent . Hanuman had the vision to realise theworthlessness of material things and the incalculable worth of the name of the lord .He thus raised himself to divine status.
Hanuman , a vaanara( monkey) , gained the exalted status of deity while Ravana, with the world's wealth in the palm of his hand ,was reduced to naught . The difference between Hanuman and ravana was that the former leaned towards spiritual treasures whereas the latter gravitated towards the material temptations of the world. Hanuman was humble and wanted to be the greatest devotee; Ravana was inflated with ego; he wanted to be the mightiest king. Hanuman spurned the priceless necklace studded with precious gems offered by sita because its beads did not resonate with the name of Rama.To a man of the world it would seem foolish to reject a priceless necklace ,but a spiritually awakened soul would be indifferent to it , attaching value only to that which was permanent . Hanuman had the vision to realise theworthlessness of material things and the incalculable worth of the name of the lord .He thus raised himself to divine status.
Wednesday, 26 October 2011
Diwali is one of the most popular festivals in india. Better known as deepavali or the festivals of lights , it's a celebration that's embraced by everyone. Diwali brings together people of different faiths and persuasions, with each adding flavour and fun to the festivals .
All celebration is marked by austerity , simplicity ,serenity ,equity ,calmness, charity ,philanthropy and environment- consciousness.
Firecrackers are avoided as they cause noise and atmosphere pollution .jain temples are decorated with lights, sweets and diyas or lamps are distributed , the lamps denoting knowledge or removal of ignorance. Diwali is celebration of mahavira's nirvana as well as a day that makes new beginnings ,a kind of new year . Hence members of the jain community wish each other a happy new year.
Tuesday, 30 August 2011
RAM KI SITA HAI
भगवती सीता श्रीरामचंद्र की शक्ति और राम-कथा की प्राण है। यद्यपि वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को जानकी-जयंती मनाई जाती है, किंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता-जयंती के रूप में मान्यता प्राप्त है। ग्रंथ निर्णयसिंधुमें कल्पतरु नामक प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ देते हुए लिखा है, फाल्गुनस्यचमासस्यकृष्णाष्टम्यांमहीपते।जाता दाशरथेपत्नी तस्मिन्नहनिजानकी., अर्थात् फाल्गुन-कृष्ण-अष्टमी के दिन श्रीरामचंद्र की धर्मपत्नी जनक नंदिनी जानकी प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमीके नाम से जाना गया।
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि त्रेतायुगमें जब भगवान विष्णु श्रीरामचंद्र के रूप में अयोध्या नरेश दशरथ के महल में अवतीर्ण हुए, तभी विष्णु जी की संगिनी भगवती लक्ष्मी महाराज जनक की राजधानी मिथिला में अवतरित हुई। मान्यता है कि एक दिन राजा जनक खेत जोत रहे थे। एक स्थान पर उनके हल की फाल रुकी, तो उन्होंने देखा कि फाल के निकट गढ्डे में एक कन्या पडी है। राजा जनक उस कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। संस्कृत में हल की फाल को सीता कहते है। इसलिए जनक ने उसका नाम सीता रख दिया।
वेद-उपनिषदों में सीता के स्वरूप का परिचय विस्तार से दिया गया है। ऋग्वेद में स्तुति की गई है, हे असुरों का नाश करने वाली सीते! आप हमारा कल्याण करे। सीतोपनिषद्में सीता को ही मूल प्रकृति अर्थात् आदि शक्ति माना गया है। इस उपनिषद् में उनका परिचय देते हुए कहा गया है- जिसके नेत्र के निमेष-उन्मेष मात्र से ही संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार आदि क्रियाएं होती है, वह सीताजीहै। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस में सीताजीको ऐसे नमन करते है- संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को हरने वाली, सब प्रकार से कल्याण करने वाली, रामचंद्र की प्रियतमा सीताजीको मैं नमस्कार करता हूं।
भगवान श्रीराम की तरह सीता भी षडैश्वर्य-संयुक्ताहै। पद्म पुराण में सीताजीको जगन्माता और भगवान राम को जगत-पिता बताया गया है। अध्यात्म रामायण का कहना है कि एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे है और सीताजीही वह योगमाया है। महारामायणमें सीताजीको ही समस्त शक्तियों का श्चोतघोषित किया गया है।
विवाह से पूर्व सीता महाराज जनक की आज्ञाकारिणी पुत्री तथा विवाहोपरांतमहाराज दशरथ की अच्छी बहू के रूप में सामने आती है। वे रामचंद्र जी की सच्ची सहधर्मिणी साबित होती है। वनवास के कष्टों की परवाह किए बिना वे पति के साथ वन-गमन करती है। वे वाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्रों लव-कुश को अच्छे संस्कार देती है। पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के रूप में उनका आदर्श रूप सामने आता है। सीता जिस कुशलता से कर्तव्यों का पालन करती है, वह प्रेरणादायीहै। रामचंद्रजीको जब सीताजीने वरमालापहनाई, तो वे श्रीराम बन गए। वस्तुत:श्रीराम की श्री सीता ही है। इसीलिए हम सीतारा कहते है या श्रीरा। सही मायनों में रामचंद्र की श्री-रूपा शक्ति सीता ही है। उनका चरित्र अनुकरणीय है।
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि त्रेतायुगमें जब भगवान विष्णु श्रीरामचंद्र के रूप में अयोध्या नरेश दशरथ के महल में अवतीर्ण हुए, तभी विष्णु जी की संगिनी भगवती लक्ष्मी महाराज जनक की राजधानी मिथिला में अवतरित हुई। मान्यता है कि एक दिन राजा जनक खेत जोत रहे थे। एक स्थान पर उनके हल की फाल रुकी, तो उन्होंने देखा कि फाल के निकट गढ्डे में एक कन्या पडी है। राजा जनक उस कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। संस्कृत में हल की फाल को सीता कहते है। इसलिए जनक ने उसका नाम सीता रख दिया।
वेद-उपनिषदों में सीता के स्वरूप का परिचय विस्तार से दिया गया है। ऋग्वेद में स्तुति की गई है, हे असुरों का नाश करने वाली सीते! आप हमारा कल्याण करे। सीतोपनिषद्में सीता को ही मूल प्रकृति अर्थात् आदि शक्ति माना गया है। इस उपनिषद् में उनका परिचय देते हुए कहा गया है- जिसके नेत्र के निमेष-उन्मेष मात्र से ही संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार आदि क्रियाएं होती है, वह सीताजीहै। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस में सीताजीको ऐसे नमन करते है- संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को हरने वाली, सब प्रकार से कल्याण करने वाली, रामचंद्र की प्रियतमा सीताजीको मैं नमस्कार करता हूं।
भगवान श्रीराम की तरह सीता भी षडैश्वर्य-संयुक्ताहै। पद्म पुराण में सीताजीको जगन्माता और भगवान राम को जगत-पिता बताया गया है। अध्यात्म रामायण का कहना है कि एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे है और सीताजीही वह योगमाया है। महारामायणमें सीताजीको ही समस्त शक्तियों का श्चोतघोषित किया गया है।
विवाह से पूर्व सीता महाराज जनक की आज्ञाकारिणी पुत्री तथा विवाहोपरांतमहाराज दशरथ की अच्छी बहू के रूप में सामने आती है। वे रामचंद्र जी की सच्ची सहधर्मिणी साबित होती है। वनवास के कष्टों की परवाह किए बिना वे पति के साथ वन-गमन करती है। वे वाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्रों लव-कुश को अच्छे संस्कार देती है। पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के रूप में उनका आदर्श रूप सामने आता है। सीता जिस कुशलता से कर्तव्यों का पालन करती है, वह प्रेरणादायीहै। रामचंद्रजीको जब सीताजीने वरमालापहनाई, तो वे श्रीराम बन गए। वस्तुत:श्रीराम की श्री सीता ही है। इसीलिए हम सीतारा कहते है या श्रीरा। सही मायनों में रामचंद्र की श्री-रूपा शक्ति सीता ही है। उनका चरित्र अनुकरणीय है।
SRI KRISHNA
LEELA PURUSHOTAM HAI SRIKRISHANA
Srikrishna ne janam ke sath hi leela aarambh kar di thi aor jivan bhar lokhit me leelae karte rahe. yahi karan hai ki wo ban gae leela purushotam .
Sri ram aor srikrishna dono hi bhagwan vishnu ke avtar mane gae hai, parantu dono ki parkiriti aor acharan me kafi bhinta hai. sri ram ne kathin se kathin pariesthiti me bhi maryada ka atikarman nahi kiya, we maryada purushotam kahlae. wahi shri krishna ka avtaran biprit pariesthitio me hua. mata devki aor pita bashudev atayachari kansh ke karagar me bandi the. apne avibhao se sawdham gaman tak srikrishna ne etni vividhita ke sath tamam leelae ki we ban gae leela purushotam.
ANANT LILA VILAS -------
PORANIC GARNTHO aor khatho me bhagwan sri krishna ka leela vilash anant hai. janam lete hi chaturbhujh rup me pargat hokar , phir chhota balak ban jana, karagar ke pahredaro ka so jana aor pita basudev ji ki hathkadi - bedi aor darwaje ka sawam khul jana , yamuna me badh aane par bhi rato rat balak srikrishna ka gokul pahuch jana, samanay bate nahi thi. apni chhti ke din hi rakshai putna ka shisu srikrishna ne sanhar kar diya .yasoda mata ko mukh ke andar brahmand dhikhlana, barahma ji ko sabak sikhane ke liye gop- balak aor bachhro ki navin sristi karna, akarurji ko marg aor jal ke andar ek hi sath dono jagah ek hi rup me darsan dena aor bal krishna dawara kakasur ki gardan maror kar use phek dena aasharyjanak tha.
CHIR HARAN-
Leela ke madhayam se srikrishna ne gopiyo ko yah samja diya ki jab tak jiv agyan ke aaowran me rahega , tab tak parmatma se uska milan nahi ho sakega. es leela ka ek anay abhipray jeev ka dehabhiman samapt karna hai. srikrishna ki ras leela ka bhi bara gudh arath hai. esme bhog vilas jara sa bhi nahi hai. ras leela karke onhone yah sanket kar diya ki jab jeev gopi -bhav dharan karke apna sab kuchh sri krishna ko samarpit kar deta hai. tab wo un sarbeswar ka kirpapatra ban jata hai
Srimad bhagwat gita me likha hai ki bhagwan srikrishna ne jis deh se 125 baras tak lokhit me vividh leelae ki , wah deh bhi kisi ko nahi mili. srikrishna ki har leela hameh jeevan jeene ki kala sikhati hai. jagat guru bankar srikrishna ne arjun ko sambodhit karte hue .hameh gita ke rup me jo updesh diye hai, we sada samaj ke margdarsan karte rahege. yahi karan hai srikrishna ki astuti me kaha gaya नमोदेवादिदेवायकृष्णायपरमात्मने।परित्राणायभक्तानांलीलया वपुधारिणे
Srikrishna ne janam ke sath hi leela aarambh kar di thi aor jivan bhar lokhit me leelae karte rahe. yahi karan hai ki wo ban gae leela purushotam .
Sri ram aor srikrishna dono hi bhagwan vishnu ke avtar mane gae hai, parantu dono ki parkiriti aor acharan me kafi bhinta hai. sri ram ne kathin se kathin pariesthiti me bhi maryada ka atikarman nahi kiya, we maryada purushotam kahlae. wahi shri krishna ka avtaran biprit pariesthitio me hua. mata devki aor pita bashudev atayachari kansh ke karagar me bandi the. apne avibhao se sawdham gaman tak srikrishna ne etni vividhita ke sath tamam leelae ki we ban gae leela purushotam.
ANANT LILA VILAS -------
PORANIC GARNTHO aor khatho me bhagwan sri krishna ka leela vilash anant hai. janam lete hi chaturbhujh rup me pargat hokar , phir chhota balak ban jana, karagar ke pahredaro ka so jana aor pita basudev ji ki hathkadi - bedi aor darwaje ka sawam khul jana , yamuna me badh aane par bhi rato rat balak srikrishna ka gokul pahuch jana, samanay bate nahi thi. apni chhti ke din hi rakshai putna ka shisu srikrishna ne sanhar kar diya .yasoda mata ko mukh ke andar brahmand dhikhlana, barahma ji ko sabak sikhane ke liye gop- balak aor bachhro ki navin sristi karna, akarurji ko marg aor jal ke andar ek hi sath dono jagah ek hi rup me darsan dena aor bal krishna dawara kakasur ki gardan maror kar use phek dena aasharyjanak tha.
CHIR HARAN-
Leela ke madhayam se srikrishna ne gopiyo ko yah samja diya ki jab tak jiv agyan ke aaowran me rahega , tab tak parmatma se uska milan nahi ho sakega. es leela ka ek anay abhipray jeev ka dehabhiman samapt karna hai. srikrishna ki ras leela ka bhi bara gudh arath hai. esme bhog vilas jara sa bhi nahi hai. ras leela karke onhone yah sanket kar diya ki jab jeev gopi -bhav dharan karke apna sab kuchh sri krishna ko samarpit kar deta hai. tab wo un sarbeswar ka kirpapatra ban jata hai
Monday, 29 August 2011
SUPPORT MY SCHOOL
Every child has a right to education and learning in a happy healthy environment.Join our initiative and tell us how you can make a difference.
we need your help to make these school a happy and healthy place for our children . Pledge your support to help us provide them with basic facilities like water ,adequate sanitation and hygiene education.
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